श्राद्ध पक्ष
हमारे पूजनीय पितरो
के सम्मान के
लिये उनके प्रति
हमारी श्रद्धा और
आस्था का प्रतिक
है,श्राद्ध के
बहुत से नियम
हमारे शास्त्रो में
उल्लेख किया गया
है,जो हम
यहाँ उन नियमो
का उलेख कर
रहे है जो
इस प्रकार है।
- श्राद्धहमेशाअपनीभूमियाअपनेघरपरकियाजानाचाहिये,किसीनदी / सागरतटपरभीजासकताहै।
- श्राद्ध के लिये दक्षिण की और ढलान वाली भूमि खोजनी चाहिये क्योकि दक्षिण में पितरो का वास होता है,देवताओं का प्रभाव उत्तरायण होता है,
- भूमि को गोबर से लीपना चाहिये। पितृगण स्वच्छ स्थलों,नदीतट और ऐसे स्थानो को अधिक पाषंड करते है जहा मनुष्य का आवागमन कम होता है।
- श्राद्ध का अधिकार केवल पुत्र को दिया गया है,यदि पुत्र न हो तो पुत्री का पुत्र नाती श्राद्ध कर सकता है,जिस माता पिता के अनेक पुत्र हो उनमे ज्येष्ठ पुत्र को श्राद्ध करने का हक है,पुत्र के आभाव में पौत्र तथा पौत्र के न होने पर प्रपोत्र श्राद्ध कर सकता है,पुत्र व पौत्र के गैरहाजरी में विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है,परन्तु पत्नी का श्राद्ध पति तभी कर सकता है जब उसके कोई संतान ना हो,पुत्र को ही अपनी माता का अपनी माता का श्राद्ध करना चाहिये,
- तीर्थ स्थल श्राद्ध के लिये सर्वश्रेष्ठ मने गए है,शास्त्रो के अनुसार तर्पण का जल सूर्यउदय से आधे प्रहर तक अमृत,एक प्रहार तक मधु,डेढ़ प्रहर तक दूध,और साढ़े तीन प्रहार तक जल रूप में पितरो को प्राप्त होता है,मत्स्यपुराण के अनुसार दिन के तीसरे प्रहर ,अभिजीत मुहूर्त,तथा रोहिणी नक्षत्र के उदयकाल में पितरो के निमित जो कुछ दिया जाता है वह सब अक्षय फल दायक होता है,
- देवगण कहते है की कुश तथा कला तिल भगवान विष्णु के शरीर से निकले है,अतः ये दोनों वस्तुए श्राद्ध की रक्षा में महान उपयोगी है,तिल और कुश के बिना तर्पण करने से पितरो को जल नहीं मिलता है,पूर्वाभिमुख होकर बाये कंधे पर धुल हुआ वस्त्र या अंगोछा धारण करके दोनों हाथो की अनामिका अंगुली की जड़ में पवित्री लेकर और हाथ में मोदक तिल जो तथा जल लेकर देशकाल का उच्चारण कर ' देवर्षिपितृतर्पणमह करिष्ये ' कहकर संकल्प छोड़ना चाहिये।
- पितरो का करए करते समय कुछ कार्य बाये अंग से किये जाते है,अतः यगोपवीत बायीं और से दायी और कर लिया जाना आवयश्यक है,यह विधान केवल पितरो के कार्यो में ही है,देव कार्यो में इसका विधान नहीं नहीं है ,
- श्राद्ध दिन के मध्यान्हकाल में किया जाना चाहिये,
- भोजन में दही दूध के साथ शक़्क़र से मिश्रित अन्न गए का घी,खीर,मधु मिश्रित आदि भोजन पितरो को प्रसन्न करते है,और उनके लिये अक्षय तृप्तिकारक कहे गए है,
- श्राद्ध के निमित भोजन में से एक थाली में पांच जगह थोड़े -थोड़े पकवान पंचबलि जैसे गाय कूता कौआ,देव व चींटी के लिये निकाले व हाथ में जल पुष्प,अक्षत,चन्दन व तिल लेकर संकल्प करे
- श्राद्ध कर्म में ब्राह्मण भोजन के साथ -साथ तर्पण का भी सर्वाधिक महत्व है,कहा जाता है की ब्राह्मण भोजन से एक पितृ संतुष्ट होता है तो तर्पण से समस्त पितृगण संतुष्ट होते है,तर्पण का जल पितरो तक अवश्य पहुचता है,
- श्राद्ध कर्म में पवित्रता,शुद्धता,स्वछता और श्रद्धा रखना जरूरी है,
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